खरी-खरी > विज्ञापन के नाम पर अश्लीलता परोसते इंडस्ट्री वाले! नारी शसक्तीकरण या नारी अपमान ?

खरी-खरी> विज्ञापन के नाम पर अश्लीलता परोसते इंडस्ट्री वाले! नारी शसक्तीकरण या नारी अपमान ?

आजकल टीवी पर, सिनेमा में, अखबारों में, पत्रिकाओं में, सड़को किनारे लगी होर्डिंग्स में, हर कही, जहा देखिये वही विज्ञापन नजर आएगे और नजर आएगी आधुनिकता के नाम पर परोसी जाने वाली अशलीलता भी! इतना ही नहीं, हद तो यह है कि इन्ही विज्ञापनों के बलबूते बात की जाती है नारी ससक्तिकरण की भी।
अब अश्लीलता नारी सशक्तिकरण कैसे हो सकती है! खुद सोचिये। कम से कम भारत मे तो अश्लीलता नारी ससक्तिकरण नहीं हो सकती। और अगर गलती से भी किसी ने आवाज उठायी तो यह सिद्ध कर दिया जाता है कि वो नारी विरोधी है।

स्कूटर बिक रहा है या नारी को अपने प्रोडक्ट में लड़कियों का अश्लील प्रयोग करवा रहे है ये सभी इंडस्ट्रीज़ वाले! आखिर ये हो क्या रहा है, नारियाँ खुद क्यों देख और समझ नही पा रही है कि बाजार ने उसे एक वस्तु बना दिया है। आखिर वो क्यों विरोध नही करती?

इसी प्रकार धार्मिक कार्यक्रमों में इस्तेमाल होने वाली अगरबत्ती के ऐड में महिला, शेविंग क्रीम के ऐड में महिला, डिओ के ऐड में महिला की अमुक डिओ लगाओगे तो, खिंची चली आएगी। पुरुषों के इनर वियर में महिला अजीब सी कामुक अदाओ का प्रदर्शर्न करती हुई महिला! यह क्या है आखिर? और यह सब कोई छुपा के नहीं बल्कि खुल्लम-खुल्ला हमारे आपके बीच और हमारे घरों तक पहुंच रहा है विज्ञापनों के सहारे।

18, 20 साल के युवक और युवतियों पर इसका क्या असर हो रहा है ? क्या कोई ये सोच भी रहा है ? समाज पर क्या असर होगा ?

बात कीजिये तो कहा जाता है कि हम क्या पहनेगे ये हम तय करेंगे। यह बात तो ठीक है, परन्तु क्या सार्वजनिक रूप से अश्लीलता परोसते ऐसे कपडे पहनने सही है ? क्या भारत , जहा अभी एक चौथाई आबादी एक समय खाना कहगुजरा करती है, जहा अभी जागरूकता का आभाव है ,जहा अभी लोग शाट प्रतिशत शिक्षित नहीं है ,जहा अभी लोगो को अपनी जरूरते पूरी करने के लिए योजनाओं का इन्तजार रहता है, जहा अभी विकास हो रहा है। ऐसे देश मे इतनी अश्लीलता सार्वजनिक रूप से अगर होगी तो समाज खासकर युवाओ पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? यह एक विचारणीय और चिंताजनक प्रश्न है। और यह सब परोस रहे है सार्वजनिक मंच पर मौजूद अश्लीलता फैलाते विज्ञापन जिससे हमारा समाज खासकर युवा वर्ग प्रभावित हो रहा है। और प्रभावित होकर वैसे ही कपडे और वैसा ही स्वक्छंद आचरण में खुद क ढलता है और ढलने की कोशिश कर रहा है।

लड़को को संस्कारो का पाठ अवश्य पढ़ाया जाए, यह आवश्यक है परन्तु नारी की भी तो मर्यादा ,सीमा तय करनी होगी या फिर ऐसा प्रश्न पूछने, बात कहने वालो को नारी स्वतंत्रता, ससक्तिकरण का दुश्मन कह के इति श्री कर ली जायेगी।

पुरुषो को मर्यादा पढ़ाने वाला स्त्री समुदाय क्या इस बात का उत्तर देगा की क्या भारतीय परम्परा में ये बात शोभा देती है की एक लड़की अपने परिजनों के आगे अपने निजी अंगो का प्रदर्शन बेशर्मी से करे ?
आधुनिकता ,स्वतंत्रता, ससक्तिकरण का कोई विरोध नहीं है परन्तु अश्लीलता का है। समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है, तो ऐसी आधुनिकता का अवश्य है। भारतीय परम्परा का नाश होता है, तो ऐसी आधुनिकता और स्वतंत्रता का विरोध अवश्य है।

सत्य ये है की अश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधो की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दूकान की मानिंद हैऔर इसका उत्पादन काफी मष्तिष्क विज्ञान के अनुसार 4 तरह के नशो में एक नशा अश्लीलता (सेक्स) भी है।

पॉइंट ये है कि संस्कार, इस विषय मे वेशभूषा को ना भुला जाए। हम संस्कृति के इस चीरहरण कर्ण या भीष्मपिता बनकर मुख दर्शक बन कर न रहें क्युकी ये भारत है कोई थाईलैंड नहीं!

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