MP Election 2023: क्या जानबूझकर घोला जा रहा जातिवाद रूपी जहर ?(series.1)

मप्र विधानसभा चुनाव 2023: क्या जानबूझकर घोला जा रहा जातिवाद रूपी जहर ?

गौरतलब है साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने है और सभी दल विशेषकर बीजेपी और कांग्रेस जोर आजमाइश में लगी है और कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रही है। क्या ऐसे में जातिवाद रूपी जहर घोलने का प्रयास भी जारी है? भले ही ऐसा अप्रत्यक्ष रूप से हो रहा है पर ऐसा हो जरूर रहा है। आइये इस खबर में विस्तार से समझते है…

विभिन कल्याण बोर्ड का गठन :
विश्वकर्मा, स्वर्णकार, तेलघानी, रजक और ब्राह्मण कल्याण बोर्ड के गठन ने जातिगत राजनीति को बढ़ाने में बड़ी भूमिका अदा की है। हलाकि राज्य सरकार का तो कहना है कि कल्याण बोर्ड का गठन इन जातियों के उत्थान के लिए किया गया है और शायद ऐसा होता भी होगा परन्तु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसा करके जातिवाद का जहर भी घुल रहा है राजनितिक फिजा में।

आपको बता दें कि मध्य प्रदेश के राजनीतिक माहौल में भी जातिगत दबाव दिखाई देने लगा है। प्रदेश में पहला मौका है, जब जातियों के आधार पर दबाव बनाने वाले काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं। राज्य सरकार ने भी जाति आधारित बोर्डों का गठन कर जातिवादी राजनीति को हवा देने का काम किया है। जातिगत समीकरणों के चलते अब तक स्वर्णकार, तेलघानी, रजक, विश्वकर्मा और ब्राह्मण कल्याण बोर्ड का गठन किया जा चुका है।

ऐसे में अन्य जातियों के लोग और सामाजिक संगठन भी राजनीतिक पार्टियों पर उनके प्रत्याशी को टिकट देने का दबाव बनाने की राह पर चल पड़े हैं। ये संगठन सरकार से अपने-अपने समाज के कल्याण बोर्ड के गठन की मांग भी कर रहे हैं। इधर कांग्रेस ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कुछ सामान्य सीटों पर ओबीसी प्रत्याशी उतारने का इरादा जताते हुए तैयारी भी शुरू कर दी है। बीजेपी पहले से ही इस खेल में माहिर है।

OBC आरक्षण बढ़ने से है नाराजगी :
दरअसल प्रदेश में पहले ही एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन और ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत 14 से बढ़ाकर 27 करने के बाद से समाज बंट गया है। ओबीसी आरक्षण बढ़ाने से सामान्य और एससी-एसटी दोनों वर्ग नाराज हैं। पदोन्नति में आरक्षण की वजह से सरकारी कर्मचारी नाराज हैं। सामान्य अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग समाज पार्टी (सपाक्स), अनुसूचित जाति-जनजाति कर्मचारी संघ (अजाक्स) और जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन (जयस) जैसे संगठन जातिवादी राजनीति को और हवा दे रहे हैं। इसका सीधा असर विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा।

मध्य प्रदेश में जातीय समीकरण :
सामान्य: 22%
ओबीसी: 33%
एससी: 16%
एसटी: 21%
अल्पसंख्यक: 8%

मुद्दों से भटककर जातिवादी समीकरणों में उलझा :
उल्लेखनीय है कि नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश की राजनीति में जातिवाद का रंग नजर आने लगा है। हालांकि जातिवाद की राजनीति करने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा), सवर्ण समाज पार्टी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मप्र में कभी सफल नहीं हुईं। लेकिन आगामी चुनाव से पहले जातिगत समीकरणों के हिसाब से प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य एकदम बदला हुआ है। चुनाव सड़क, बिजली, पानी, रोजगार, विकास जैसे अहम राजनीतिक मुद्दों से भटक कर जातिवादी समीकरणों में उलझता जा रहा है।

ओबीसी संगठन बना रहे टिकट का दबाव :
अब प्रदेश में ओबीसी वर्ग की अलग राजनीति पनप चुकी है। ओबीसी संगठन प्रदेश में अपनी जनसंख्या के मुताबिक टिकट के लिए दबाव बना रहे हैं। वहीं ओबीसी आरक्षण जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दिए जाने से सामान्य वर्ग के संगठन अपनी उपेक्षा का आरोप लगाने से नहीं चूक रहे। बीजेपी डैमेज कण्ट्रोल में लगी हुई है। कांग्रेस मौके का फायदा उठाना चाहती है और सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुइसार रणनीति तैयार कर रही है है कि इस चुनाव में सामान्य सीटों पर ओबीसी प्रत्याशी उतारे ताकि उसे ओबीसी वोटबैंक का फायदा मिल सके। तो वही भाजपा काट खोज रही है।

कांग्रेस को जाता है बढ़ावा देने का श्रेय :
राजनितिक पंडितो की माने तो प्रदेश में जातिवादी राजनीति को बढ़ावा देने का श्रेय कांग्रेस को जाता है। उल्लेखनीय है कि तत्कालीन कमल नाथ सरकार ने प्रदेश में ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत 14 से बढ़ाकर 27 कर दिया था। कांग्रेस ने विभिन्न जातियों के सामाजिक सम्मेलन आयोजित कर जातिगत राजनीति को हवा दी थी। संगठन में भी जातिगत प्रकोष्ठ व मोर्चा बनाए थे। इसी कड़ी में एक कदम आगे बढ़ विभिन्न कल्याण बोर्ड का गठन किया ताकि नुक्सान की भरपाई हो सके।

जब ग्वालियर चंबल में हिंसा भड़की :
आपको बता दें कि जाति आधारित वैमनस्यता फैलाने का काम वर्ष 2018 में तब प्रारंभ हुआ था, जब एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भारी हिंसा भड़क गई थी, इसमें आठ लोग मारे गए थे। कहा जा रहा है कि अब इस क्षेत्र में कांग्रेस नेता पर्दे के पीछे से चंद्रशेखर की भीम आर्मी को मदद कर रहे हैं, जो जातिवाद की राजनीति को आक्रामक बना रही है। हलाकि कभी भीम आर्मी और चंद्रशेखर को बसपा का भी समर्थन प्राप्त था।

इधर, मालवांचल में जयस पर भी आदिवासियों को कथित रूप से भड़काने के आरोप हैं। जल, जंगल, जमीन पर अधिकार और संवैधानिक अधिकारों को लेकर जयस आदिवासियों को भाजपा के खिलाफ लामबंद कर रहा है।

विंध्य क्षेत्र में रीवा की बात करें तो हलाकि जातिगत रूप से कोई निश्चित आंकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं परन्तु ब्राह्मण और ठाकुर आबादी में बहुसंख्यक है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि रीवा जिले में लगभग 25 प्रतिशत ब्राह्मण मतदाता हैं और ठाकुर, केवल एक प्रतिशत कम हैं यानी 24% हैं।
इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने पारंपरिक रूप से जिले की अधिकतर सीटों पर ब्राह्मण और ठाकुर उम्मीदवारों को मैदान में उतारते हैं। जिसका नतीजा यह हुआ कि OBC कुर्मी वोट लामबंद होकर एकजुट हो गए और जिले में अपना अलग ही वर्चस्व स्थापित करने की होड़ में है और काफी हद तक सफल होते हुए भी दिख रहे है। कांग्रेस की तरफ से राजमणि पटेल को राज्य सभा भेजना उदहारण के रूप में लिया जा सकता है। इसी प्रकार विभिन्न दलित संगठन दलित वोटर्स को एकजुट करने में लगे हैं। हलाकि बीजेपी की अनेक योजनाए इसमें पलीता लगाने का कार्य कर रही हैं।

by Er. Umesh Shukla @ ‘Virat24’ news

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