बुद्धि देवता हैं भगवान गणेश:सफलता चाहते हैं तो पूजा-पाठ के साथ ही बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए धैर्य और शांति के साथ काम करते रहें

बुद्धि देवता हैं भगवान गणेश:सफलता चाहते हैं तो पूजा-पाठ के साथ ही बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए धैर्य और शांति के साथ काम करते रहें

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से गणेश जी की पूजा का दस दिवसीय महापर्व शुरू होता है। इस साल 19 सितंबर से ये पर्व शुरू होगा। पंचांग भेद की वजह से चतुर्थी तिथि दो दिन यानी 18 और 19 सितंबर को रहेगी। गणेश जी की पूजा के साथ ही भगवान की सीख को जीवन में उतार लिया जाए तो हमारी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, गणेश जी बुद्धि और परिवार के देवता हैं, यानी इनकी पूजा से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। शिव-पार्वती और गणेश जी के साथ ही उनकी दो पत्नियों रिद्धि-सिद्धि और दो पुत्र क्षेम यानी शुभ और लाभ की भी पूजा करनी चाहिए।

शिव परिवार में माता पार्वती, कार्तिकेय स्वामी, गणेश जी के साथ ही शिव जी का वाहन नंदी, शिव के गले में नाग, देवी मां का वाहन शेर, कार्तिकेय स्वामी का वाहन मयूर (मोर), गणेश जी का वाहन मूषक (चूहा) भी है। शिव जी के परिवार में बैल, शेर, मोर, चूहा और सांप सभी साथ रहते हैं। ये सभी जीव एक-दूसरे के शत्रु होते हैं, फिर भी सभी एक साथ रहते हैं। शिव परिवार का संदेश ये है कि घर-परिवार में सभी लोगों की सोच और स्वभाव एक-दूसरे से अलग-अलग होता है, फिर सभी को एक साथ मिलजुल कर ही रहना चाहिए।

गणेश जी से सीखें सफलता का सूत्र :
भगवान गणेश का सिर हाथी का और धड़ मनुष्य का है। गणेश के स्वरूप की सीख ये है कि व्यक्ति की बुद्धि हाथी की तरह गंभीर होनी चाहिए, ताकि व्यक्ति हर बात पर गंभीरता से विचार कर सके। हाथी खूब सोच-विचार कर काम करता है। हाथी को जल्दी गुस्सा नहीं आता और शक्तिशाली होने के बाद भी शांत रहता है, अकारण उत्पात नहीं मचाता है। गणेश जी का स्वरूप संदेश दे रहा है कि हमें जीवन में गंभीरता से रहना चाहिए। हालात कैसे भी हों, हमें धैर्य और शांति बनाए रखनी चाहिए। अकारण कभी भी गुस्सा नहीं करना चाहिए।

गणेश जी को बुद्धि का देवता भी कहा जाता है। गणेश जी ने अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए एक बार देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव का घमंड तोड़ा था। भगवान ने बुद्धि का इस्तेमाल करके कई असुरों को पराजित किया। जब गणेश जी और कार्तिकेय स्वामी को संसार की परिक्रमा लगाने की शर्त पूरी करनी थी, उस समय गणेश जी ने अपने माता-पिता परिक्रमा करके शर्त जीत ली थी। गणेश जी की बुद्धिमानी से शिव जी प्रसन्न हो गए और उन्हें प्रथम पूज्य होने का वरदान दे दिया।

गणेश जी संदेश दिया है कि जब हम बुद्धि का उपयोग करते हुए धैर्य और शांति के साथ काम करते हैं तो हमें सफलता जरूर मिलती है।

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