शहीदे आजम भगत सिंह की समाधि के साथ भारत सरकार ने ऐसा किया था कि, आप सोच भी नही सकते

शहीदे आजम भगत सिंह की समाधि के साथ भारत सरकार ने ऐसा किया था कि आप सोच भी नही सकते

शहीदे आजम भगत सिंह जी की समाधि के लिए भारत सरकार ने कुछ ऐसा किया था, जिसे आजकल की पीढ़ी के नौजवान तो छोड़िए किसी भी उम्र के लोगो शायद ही पता होगा। नेताओ की बात करें तो बहुत कम नेताओ को पता होगा।

बहरहाल आपको पता है कि नही यह तो आप लेख पढ़ने के बाद ही जान सकेंगे…

पर आज हम आपको वो बात बताएंगे क्युकी शहीद क्रांतिकारी वो थे जो देश की आजादी के लिऐ, हमारे आपके लिए जिन्होंने हंसते हंसते बिना उफ किए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। अगर हम देशवासी उन शहीदों के विषय में नही जानते तो लानत है हम पर।

खैर आज हम आपको भगत सिंह जी की समाधि से जुड़ी दिलचस्प बात बताने वाले हैं जिसे पढ़कर आपके ज्ञान में वृद्धि तो होगी ही साथ ही साथ देशभक्त भारतीय होने का आभास भी होगा। बस इस लेख को आपको अंत तक पढ़ना होगा…

भगत सिंह की समाधि के बदले पाक को दिए थे 12 गांव, 60 के दशक से पहले तीनों शहीदों की समाधि थी पाकिस्तान के कब्जे में

सरदार सुरमा भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था। जबकि 23 मार्च 1931 को उन्हे संगदिल अंग्रेजों ने फासी पर चढ़ाया था यानी इस दिन वो वीरगति को प्राप्त हुए थे। हुसैनीवाला स्थित शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव के समाधि स्थल पाकिस्तान से वापस लेने के लिए हुए समझौते के तहत फाजिल्का के 12 गांव पाकिस्तान को दिए गए थे। इसकी वजह से फाजिल्का की भौगोलिक स्थिति बिगड़ गई और अनेक वीर जवानों को भारत-पाक 1965 व 1971 युद्ध में शहादत देनी पड़ी।

भगत सिंह की समाधि थी पाक क्षेत्र में :

भगत सिंह को याद करने वाले नेताओं में ऐसे कम नेता है, जिन्हें पता हो कि 60 के दशक से पहले तीनों शहीदों की समाधि पाकिस्तान के कब्जे में थी। जनभावनाओं को देखते हुए 1950 में नेहरू-नून मुहाइदे के तहत फैसला लिया गया था कि पाकिस्तान से शहीदों की समाधि वापस ली जाए। करीब एक दशक के बाद पाकिस्तान ने फाजिल्का का अहम हिस्सा मांग लिया। हालांकि सैन्य दृष्टि से यह इलाका अहम था, मगर जनभावनाओं को देखते हुए फाजिल्का के 12 गांव पाकिस्तान को देने पड़े। यही वजह है कि पाक के साथ हुए दो युद्धों में फाजिल्का क्षेत्र को काफी नुकसान झेलना पड़ा।

लुहार हाजी करीम से कराई थी पिस्तौल की मरम्मत :

भगत सिंह दिन के समय वेश बदलकर अन्य देश भक्तों के साथ अपने संबंध कायम रखते और रात के समय दानेवालिया के घर लौट आते। यहां वह जसवंत सिंह की हवेली में ठहरते। जिस हवेली में भगत सिंह कई महीनों तक रहे, वह हवेली आज भी मौजूद है। इसके अलावा हवेली के सामने वाला खूंह (कूआं) भी मौजूद है। वहां से जाते समय भगत सिंह ने गांव के लुहार हाजी करीम से अपनी पिस्तौल की मरम्मत करवाई। 1929 में गिरफ्तारी के बाद भगत सिंह ने पुलिस को यह बता भी दिया कि उन्होंने कहां पनाह ली? इसके बाद ब्रिटिश पुलिस ने गांव में छापामारी कर तलाशी ली और ग्रामीणों से भगत सिंह के बारे जानकारी हासिल करने का प्रयास किया, लेकिन किसी ने उनके गांव में छुपे रहने की बात नहीं बताई।

सांडर्स को मारने के बाद गांव दाने वाल में ली थी पनाह :

लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने ब्रिटिश अधिकारी सार्जेंट स्कॉट समझकर सार्जेंट सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। ब्रिटिश अधिकारियों ने भगत सिंह को ढूंढने का अभियान तेज कर दिया। वह जिले के गांव दाने वाला में पहुंचे। फाजिल्का के इतिहासकार लछमण दोस्त ने बताया कि इस बात का खुलासा पंजाब के पूर्व इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस भगवान सिंह की पुस्तक 20वीं सदी दा पंजाब पृष्ठ नं.78 पर किया गया है। जिसमें बताया गया है कि गांव दानेवालिया में भगत सिंह ने अपने देश भक्त साथी जसवंत सिंह दानेवालिया के घर में पनाह ली।

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