मप्र चुनाव 2023: बीजेपी और कांग्रेस की बदलती सियासत(series 5)
MP Election 2023 News: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव होने में अब महज 4-5 महीने का समय ही बचा है।ऐसे में सत्तारूढ़ बीजेपी समेत सभी राजनीतिक पार्टियां सक्रिय हो गई हैं। चुनावों को नजदीक आते देख अब सभी राजनीतिक पार्टियों ने चुनावी बिसात बिछाना भी शुरू कर दिया है।
राजनीति दलों के साथ-साथ निर्वाचन आयोग और आयोग के निर्देशन में प्रशासन ने भी 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए काम शुरू कर दिया है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीख से जुड़ी इस वक्त की बड़ी खबर सामने आई है। मिली जानकारी के अनुसार विधानसभा चुनाव 1 अक्टूबर के बाद ही होगा।
विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू होने के साथ ही सियासी हलचल तेज हो गई है। माना जा रहा है कि जहा कांग्रेस को दलबदल से फायदा होने की उम्मीद है तो वहीं बीजेपी को कांग्रेस की गुटबाजी से लाभ मिलेगा।
मध्य प्रदेश के चुनावी साल में बीजेपी और कांग्रेस मैं मचे घमासान का ज्यादा लाभ किसे मिलेगा, इसे लेकर दोनों ही पार्टियां पूरी ताकत लगा रही है. जहां एक तरफ कांग्रेस दलबदल पर विश्वास रख रही है। वहीं बीजेपी कांग्रेस की गुटबाजी को लेकर खुद का फायदा होने की बात कह रही है।
दरअसल, इस बार विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से घमासान शुरू हो गया है। चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही कई बड़ी घोषणा कर चुकी हैं। साथ ही दोनों ही दल सत्ता हासिल करने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा रही है।
दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ दावा कर चुके हैं कि बीजेपी के कई बड़े नेता कांग्रेस के संपर्क में हैं। कमलनाथ समर्थक विधायक सज्जन सिंह वर्मा तो यहां तक कह चुके हैं कि इस बार बारिश के मौसम में कांग्रेस ज्वाइन करने वाले बीजेपी नेताओं की बाढ़ आने वाली है।
क्या कांग्रेस ने अपनी सियासत का रसासन बदल दिया है?
क्या अब काग्रेस बीजेपी के ही तर्ज पर हिन्दुत्व विचारधारा की लाठी पकड़कर मध्यप्रदेश में चलेगी? बीते कुछ समय में नजारे देख कर तो ऐसा ही लगता है। कमलनाथ, राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा और प्रदेश कांग्रेस के तमाम बड़े और प्रभावशील नेता हिंदुत्व का राग अलापते दिखते है। इससे तो यही लगता है कांग्रेस ने अपनी सियासत का रसायन बदलना शुरू कर दिया है। बहरहाल कांग्रेस के हिन्दुत्व रास्ते पर चलने से भाजपा की हांडी खलबलाने लगी है।
खंड-खंड भाजपा और संघ>दो भाजपा और दो संघ : चुनावी वर्ष में कांग्रेस और बीजेपी नई संस्कृति में ढल रही हैं। भाजपा का कांग्रेसीकरण और कांग्रेस का भाजपाईकरण हो गया है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार बीजेपी के आंतरिक सर्वे में लगभग सौ सीट मिल रही थी। जबकि बीजेपी के नेता दावा कर रहे हैं कि अबकी दो सौ से पार। तीन साल में शिवराज सरकार ने अपेक्षा अनुसार लोगों को रोजगार नहीं दिया। जबकि अनेक विभागों की परीक्षाएं हुई। पर्चे लीक हुए। जांच के आदेश हुए। जांच की धीमी आंच मे सब ठंडा हो गया। इसके आगे कुछ नहीं हुआ। आलम यह है कि प्रदेश की जनता कहती है कि सरकार को रोजगार नहीं देना है, बल्कि परीक्षाएं करा कर सिर्फ पैसे वसूल रही है।
आकड़ो की माने तो मुख्यमंत्री शिवराज ने 18 साल में लगभग 22 हजार घोषणाएं की। जिनमे कुछ ही घोषणाएं पूरी हुई। दो सौ बीस महीने की सरकार में छोटे बड़े मिलाकर लगभग 232 घोटाले हुए है। जैसे कि राशन घोटाला, व्यापम घोटाला, खनन घोटाला, शिक्षक पात्र भर्ती घोटाला, बिजली विभाग घोटाला, पुलिस भर्ती घोटाला, ई टेंडर घोटाला, टी.वी.सेट घोटाला, कोरोना घोटाला, उज्जैन महाकुंभ घोटाला इत्यादि। घोटालों की ये लिस्ट इतनी लंबी है कि जो पीएम मोदी ने गालियों वाली लिस्ट गिनाई थी, ये तो उससे भी काफी बड़ी है।
राजनीतिक जानकार कहते है कि कांग्रेस शुरू में तो एक ही सूत्र में बंधी रहती है, परंतु जैसे ही टिकट वितरण होने लगता है वैसे ही कांग्रेस में गुटबाजी देखने को मिल जाती है। पिछले दो दशक से बीजेपी को कांग्रेस की गुटबाजी का लाभ मिल रहा है। इस बार भी गुटबाजी सड़क पर आई तो लाभ मिलना निश्चित है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार कई नेता बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में जा सकते हैं, जिन्हें बीजेपी से विधानसभा टिकट मिलने की उम्मीद कम दिखाई दे रही है। इनमे ऐसी विधानसभा के बड़े नेता शामिल है, जहां सिंधिया समर्थक नेताओं को टिकट मिलना है। जैसे कि पूर्व मंत्री दीपक जोशी भी सिंधिया समर्थक विधायक मनोज पटेल के कारण बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। निश्चित रूप से दलबदल का फायदा दूसरी पार्टी को मिलता है। नेता अपने समर्थकों के साथ जब पार्टी ज्वाइन करते हैं तो इसका लाभ जरूर मिलता है। यही वजह है कि पार्टी के बड़े नेता हमेशा अपनी पार्टी में लोकप्रिय व जनाधार वाले नेताओं को लाने की कोशिश में लगे रहते हैं।