मप्र चुनाव 2023: क्या उप्र की तरह ‘समाजवाद’ में उलझ रहा मप्र का चुनाव भी…(series 2)

मप्र चुनाव 2023: क्या उप्र की तरह ‘समाजवाद’ में उलझ रहा मप्र का चुनाव भी…(series 2)

गौरतलब है कि यूपी में हमेशा से ही जातिवाद, समाजवाद का रंग हावी रहा है। इतना ज्यादा बोलबाला रहा इन दो बातों का कि राज्य सरकार इसके इर्द गिर्द ही बनती बिगड़ती रही है। कभी बसपा तो कभी सपा इन दो मुद्दों के दम पर उप्र में खूब खेला खेला है। हलाकि पिछले कुछ वर्षो से बीजेपी ने बाजी पलट दी है, पर वो समीकरण कुछ और ही है। बहरहाल इस लेख में हम उप्र नहीं बल्कि मप्र के राजनितिक हालात और अति निकट आगामी विधानसभा चुनाव की बात आपसे करने वाले है, तो सीधे आते है अपने मुख्य मुद्दे पर कि ‘क्या उप्र की तरह ‘समाजवाद’ में उलझ रहा मप्र का चुनाव भी’ और उसी को हम विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे…

‘समाजवाद’ में उलझता दिख रहा मप्र का चुनाव, क्या बन रहे उप्र की राजनीति जैसे हालात?

चुनावों के नजदीक आते ही अब एमपी में पहली बार सामाजिक समीकरणों पर जोर दिया जा रहा है

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति जैसे हालात एमपी में भी बनते नजर आ रहे हैं। विधानसभा चुनाव से ऐन पहले एक-एक कर सभी समाज (राजनितिक दलों सहित और बगैर भी) जोर आजमाइश कर अपनी ताकत दिखाते नजर आ रहे हैं।

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जातिवाद और समाजवाद में अंतर :
कोई खास नहीं जातिगत दायरा ही विस्तृत होकर समाज के रूप में बदल जाता है,भारत जैसे देश मे तो जातियों का ही अलग समाज तैयार हो जाता है ब्रहामण समाज त्यागी समाज सैनी समाज।
जाति और समुदाय में क्या अंतर है?
जाति का मतलब कुछ भी नहीं बल्कि वह काम है जिस पर लोग निर्भर हैं । अल्लाह पर विश्वास करने वाले मुसलमान बन गए, जो यीशु पर विश्वास करते थे वे ईसाई बन गए, जो यीशु पर विश्वास नहीं करते थे वे यहूदी बन गए। समुदाय: लोगों का एक समूह जो कुछ हासिल करने की कोशिश करता है।

उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में अब महज चार-पांच महीने का ही समय शेष रह गया है। चुनावों के नजदीक आते ही अब एमपी में पहली बार सामाजिक समीकरणों पर जोर दिया जा रहा है. एक-एक कर सभी समाजें राजधानी भोपाल में अपना शक्ति प्रदर्शन कर एकजुटता का एहसास करा रही हैं और दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और बीजेपी से समाज में ज्यादा से ज्यादा टिकट वितरण की मांग कर रही हैं। बहरहाल दोनों प्रमुख दल क्या निष्कर्ष लगे यह तो वक्त ही बता सकेगा पर चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहे है वैसे वैसे समाजवाद का कोण मप्र की राजनीती में फिट बैंठता जा रहा है।

ताकत दिखाते समाज :
उत्तर प्रदेश की राजनीति की भांति ही पहली बार मध्य प्रदेश में भी समाज अपनी ताकत का एहसास करा रहे हैं. .अब तक एक दर्जन समाजों द्वारा राजधानी महाकुंभ, सम्मेलन सहित अन्य माध्यमों से एक जुटता का संदेश दिया है. शुरुआत क्षत्रीय समाज द्वारा की गई. करणी सेना के तत्वाधान में राजधानी में बड़ा प्रदर्शन किया गया था. तीन महीने पहले हुए इस प्रदर्शन में करणी सेना अध्यक्ष जीवन सिंह शेरपुर के नेतृत्व में क्षत्रीयों ने प्रदर्शन किया था. इसके बाद अनुसूचित जाति वर्ग द्वारा अपनी ताकत का एहसास कराया और उत्तरप्रदेश के नेता चंद्रशेखर रावण के नेतृत्व में राजधानी भोपाल में बड़ा प्रदर्शन किया. इस दौरान करीब डेढ़ लाख लोग इकट्ठा हुए थे.

इसी कड़ी में राजधानी भोपाल में ब्राह्मण समाज का महाकुंभ और किरार समाज का परिचय सम्मेलन आयोजित किया गयाI दोनों ही कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शामिल हुएI विप्रजनों को साधने के लए सीएम चौहान ने भगवान परशुराम जयंती पर सरकारी अवकाश के साथ ही अन्य घोषणाएं कीI

चुनावों के नजदीक आते ही मध्यप्रदेश के दोनों ही प्रमुख दल सत्ताधारी भाजपा और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने सत्ता हथियाने के लिए एड़ी चोंटी का जोर लगाना शुरु कर दिया है। समाजों को साधने के लिए दोनों ही दल लुभावने वादे, घोषणाएं भी कर रहे हैं तो वहीं समाजों द्वारा राजधानी भोपाल में शक्ति प्रदर्शन कर अपनी एकजुटता का एहसास करा रहे हैं।

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