भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल पर छिड़ी बहस, संसद के मानसून सत्र में ‘युसीसी’ बिल पेश होगा?

भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल पर छिड़ी बहस, क्या संसद के मानसून सत्र में ‘युसीसी’ बिल पेश होगा ?

देश में एक बार फिर से यूनिफार्म सिविल कोड को लेकर गर्मागर्म बहस छिड़ गयी है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र किए जाने के बाद से ही इसे लेकर बहस जारी है। मोदी ने भोपाल दौरे में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट यूसीसी लागू करना चाहती है परन्तु विपक्ष इस पर रोक लगा रही है क्युकी उनकी राजनितिक रोटियां नहीं सिक पाएगी। मोदी ने विपक्ष को सत्ता पिपासु बताया था। इसी सम्बोधन को पीएम का संकेत माना जा रहा है और सूत्रों के हवाले से जानकारी आ रही कि मोदी सरकार मानसून सत्र में यूनिफॉर्म सिविल कोड का प्रस्ताव पेश कर सकती है।
आपको बता दें कि मानसून सत्र जुलाई में बुलाया जाएगा और इसको लेकर अंतिम फैसला कैबिनेट कमेटी ऑन पार्लियामेंट्री अफेयर्स की बैठक में होगा।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, यूनिफॉर्म सिविल कोड का बिल केंद्र सरकार की ओर से संसदीय स्थायी समिति को भेजा जा सकता है। जो इस पर तमाम हितधारकों से उनके विचार मांगेगी। समान नागरिक संहिता (UCC) के मानसून सत्र में पेश होने पर संसद में सियासी घमासान मचना तय है। पीएम मोदी के यूसीसी का जिक्र किए जाने के बाद से ही बीजेपी पर कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल लगातार हमलावर है।

क्या है यूनिफार्म सिविल कोड ?
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मतलब है, भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो. यानी हर धर्म, जाति, लिंग के लिए एक जैसा कानून।
यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर सबसे बड़ा कदम 9 दिसंबर 2022 को उठाया गया। राज्यसभा में प्राइवेट मेंबर बिल के तौर पर ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड इन इंडिया 2020’ बिल को पेश किया गया। विचार यह है कि सभी नागरिकों के लिए, चाहे उनकी धार्मिक संबद्धता कुछ भी हो, विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने जैसे व्यक्तिगत मामलों के लिए कानूनों का एक सामान्य सेट होना चाहिए।

अभी क्या स्तिथि है :
अभी हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के लोग एक कानून के दायरे में आते हैं, लेकिन मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी धर्म के लोग वो कानून नहीं मानते।
इसी असामाँनता को मिटाने वाले कानून को यूनिफार्म सिविल कोड कहा गया है।
इसी यूसीसी को लेकर इन दिनों राजनितिक गलियारों में हलचल देखी जा रही है और बहुसंख्यक लोग समर्थन तो वही कुछ संगठन विरोध कर रहे है। एक देश-एक कानून पर भारत में बवाल हो रहा है।

नए संसद भवन में पहला सत्र :
आगामी मानसून सत्र नए संसद भवन में होने वाला पहला सत्र भी होगा। इसीलिए भी सभी की निगाहें इस सत्र पर टिकी है। माना जा रहा है कि संसद का मानसून सत्र जुलाई के तीसरे हफ्ते में शुरू होने की संभावना है। जानकारी के मुताबिक 2023 का मानसून सत्र 17 जुलाई से शुरू हो सकता है। सत्र के 10 जुलाई तक चलने की संभावना है। सूत्रों का कहना है कि संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति (CCPA) की बैठक जुलाई महीने की शुरुआत में हो सकती है। इस बैठक में मानसून सत्र की तारीखों को लेकर फैसला किया जाएगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सीसीपीए की बैठक की अध्यक्षता करेंगे।

यूसीसी पर विपक्ष का मत :
कांग्रेस ने इसे डिवाइडिंग सिविल कोड बताया है।
जबकि आम आदमी पार्टी ने शर्तों के साथ इसके समर्थन का ऐलान किया है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने यूसीसी के विरोध का ऐलान कर दिया है। बोर्ड ने लॉ कमीशन को शरीया कानूनों का ड्राफ्ट सौंपने का फैसला किया है। साथ ही कहा है कि जब लॉ कमीशन को 2018 में ही इसका जवाब दे दिया गया है, फिर लोगों से राय क्यों मांगी जा रही है ?

इन सबसे से इतर बीजेपी ने आरोप लगाया है कि कुछ संगठन इस मामले को जानबूझकर तूल दे रहे हैं। देश का सौहादर्य पूर्ण वातावरण खराब करने की कोशिश की जा रही है।

लोगो से मांगी गयी राय :
आपको बता दें कि लॉ कमीशन यूनिफॉर्म सिविल कोड की रिपोर्ट तैयार कर रहा है। लॉ कमीशन ने 30 दिनों के भीतर जनता से इसके लिए उनकी राय मांगी है। ईमेल आईडी के जरिए कोई भी शख्स यूसीसी के बारे में अपनी राय दे सकता है और लोग इस पर तेज़ी से अपनी राय भेज भी रहे हैं। जिसका विरोध मुस्लिम पर्सनल बोर्ड कर रहा है।

किन मुस्लिम देशो ने लागु कर रखा है यूसीसी :
कई मुस्लिम देशों ने यूसीसी लागू कर रखा है। खुद हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने भी यूसीसी को लागू कर रखा है। बड़ी बात यह है कि तुर्की, मिस्र, इराक, सीरिया और मोरोक्को जैसे देशों में तो मुसलमानों के बिना तलाक लिए कई शादियां करने पर भी बैन लगा हुआ है।

हलाकि काबिले गौर बात यह भी है कि इस्लामिक देशो में तो मुस्लिम बहुसंख्यक है जबकि अन्य धर्म के लोग अल्पसंख्यक तो ऐसे में मुस्लिम देशों ने अगर यूसीसी लागू कर रखा है तो इसका मतलब यह हुआ कि उनकी ज्यादातर आबादी को कोई दिक्क्त नहीं होगी क्युकी उनके नियम तो सुरक्षित ही है, जबकि अल्पसंख्यको को उनके नियम मानने होंगे।

बहरहाल आने वाले वक्त में माना जा रहा है कि आगामी मॉनसून सत्र काफी गहमा गहमी भरा होगा, जहा सत्ता और उनके सहयोगी सीधे आमने सामने होंगे विपक्ष के। देश में भी हलचल देखने को मिल सकने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

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