किस्सा शहीदे आजम भगत सिंह जी का, जो शायद आप नहीं जानते होंगे


किस्सा शहीदे आजम भगत सिंह जी का, जो शायद आप नहीं जानते होंगे

शहीदे आजम भगत सिंह को जानते है न ?? जानते हैं, चलिए ठीक है।
क्या है आजकल की युवा पीढ़ी के कई ऐसे नायाब नगीनो से मिलना हुआ जिन्होंने कहा कि वो भगत सिंह को नहीं जानते !!! इसलिए शुरुआत में ही जिक्र कर दिया।
आज भगत सिंह का किस्सा इसलिए क्युकी सुना है कि अब मप्र सरकार सावरकर को शामिल कर रही। नहीं सावरकर के शामिल होने से कोई एतराज नहीं है। परन्तु भगत सिंह और उनकी बिरादरी के क्रांतिकारियों पर भी वृहद प्रकाश डालने का वक्तव्य आता तो अच्छा लगता।

खैर हम अपने उद्देश्य से नहीं भटकेंगे और आपको सीधे आएंगे भगत सिंह के किस्से की तरफ…

किस्सा शहीदे आजम का :
भगतसिंह की बैरक की साफ-सफाई करने वाले भंगी का नाम बोघा था। भगत सिंह उसको बेबे (मां) कहकर बुलाते थे। जब कोई पूछता कि भगत सिंह ये भंगी बोघा तेरी बेबे कैसे हुआ? तब भगत सिंह कहते, मेरा मल-मूत्र या तो मेरी बेबे ने उठाया, या इस भले पुरूष बोघे ने। बोघे में मैं अपनी बेबे (मां) देखता हूं। ये मेरी बेबे ही है।
यह कहकर भगत सिंह बोघे को अपनी बाहों में भर लेता।

भगत सिंह जी अक्सर बोघा से कहते, बेबे मैं तेरे हाथों की रोटी खाना चाहता हूँ। पर बोघा अपनी जाति को याद करके झिझक जाता और कहता, भगत सिंह तू ऊँची जात का सरदार, और मैं एक अदना सा भंगी, भगतां तू रहने दे, ज़िद न कर।

सरदार भगत सिंह भी अपनी ज़िद के पक्के थे, फांसी से कुछ दिन पहले जिद करके उन्होंने बोघे को कहा बेबे अब तो हम चंद दिन के मेहमान हैं, अब तो इच्छा पूरी कर दे!

बोघे की आँखों में आंसू बह चले। रोते-रोते उसने खुद अपने हाथों से उस वीर शहीद ए आजम के लिए रोटिया बनाई, और अपने हाथों से ही खिलाई। भगत सिह के मुंह में रोटी का गास डालते ही बोघे की रुलाई फूट पड़ी। ओए भगतां, ओए मेरे शेरा, धन्य है तेरी मां, जिसने तुझे जन्म दिया। भगत सिंह ने बोघे को अपनी बाहों में भर लिया।

ऐसी सोच के मालिक थे अपने वीर सरदार भगत सिंह जी…। परन्तु आजादी के 70 साल बाद भी हम समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेद-भाव की भावना को दूर करने के लिये वो न कर पाए जो 88 साल पहले भगत सिंह ने किया।


महान शहीदे आजम को इस देश का सलाम

LONG LIVE REVOLUTION

by Er. Umesh Shukla (anonymous) for ‘Virat24’ news

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